Wednesday 3 August 2011

मंजिल की तलाश में

मैं राही  
मंजिल की तलाश में
चलता रहा बिना थके बिना रुके
खोजती रही आँखे 
उस हमराह को
दो कदम जो साथ चले 
कुछ लोग मिले भी 
तो नज़रे चुरा कर 
चल दिए
कोई ना मिला ऐसा 
जो मंजिल तक साथ दे,
खुद मेरा साया भी ना चला 
दो कदम साथ मेरे!

3 comments:

  1. इस भाग-दौड़ भरी दुनिया में शान्ति की तलाश किसे नहीं है पर कौन बताएगा हमें वो राह ? अब आप के ढेर सारे अनसुलझे सवालों के जवाब लेकर आया है आप का इब्नेआदम, हमारा "इब्नेआदम" जिसने उंच-नीच, जाती-पति, भेद-भाव और रंग व नस्ल के तमाम असमानताओं को मिटाकर पूरी इंसानियत को एक धागे में पिरोने की और अमन व शान्ति का पैगाम पूरी इंसानियत को देने की कसम खाई है! तो क्या आप मिलना नहीं चाहेंगे अपने चहेते इब्नेअदम से? तो फिर देर कैसी खोलिए.
    www.ibneadam.com
    आइये हम साथ मिल कर इस अमन के पैगाम को पूरी इंसानियत में आम करें !

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  2. इस सुंदर रचना के साथ ब्लॉग जगत में स्वागत है आपका।

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